Wednesday, November 24, 2010

हिन्दी मे लिखने का प्रथम प्रयास - "भ्रष्टाचार के खिलाफ़ मेरी लड़ाई"


हिन्दी मे लिखने का प्रथम प्रयास -
विगत काफ़ी समय से श्री विवेक रस्तोगी जी चाह्ते थे कि हमे भी हिन्दी ब्लॉग में शामिल होना चाहिए, सोचा शुरुआत करे। काफ़ी विचार करने के बाद मैंने पहले विषय के रूप में "भ्रष्टाचार" का चयन किया।

भ्रष्टाचार, मैं इसे "नैतिक पतन कहना ज्यादा उचित समझता हू यह हमारे-आपके, हम सबके घरो से शुरू होता है, उदाहरणार्थ अगर हमारा बच्चा नहीं पढ़ रहा है तो हम कहते हैं, अगर आप समय पर अपना काम खत्म करेगे तो आप को कुछ खिलौना या chocklet मिल सकती है....इस तरह हम उसे जाने अनजाने नैतिक पतन का पाठ सिखा रहे होते है। बच्चा तो यही समझता है कि ये सब सही है....और धीरे धीरे ये उसकी आदत मे जाता है....और जब वह बड़ा होता है तो वो भी यही सब करता है और बाद मै हम इसी भ्रष्टाचार को ले कर परेशान होते है।

इस विषय पर मुझे अपने जीवन की एक घटना याद आती है, बात करीब करीब 12-13 साल पुरानी है....मेरा परिवार उज्जैन से सतना शिप्रा द्रुतगामी रेलगड़ी से जा रहा था....यह रेलगड़ी उज्जैन स्टेशन से रात करीब 9:30 पर जाती थी....हम लोग समय पर स्टेशन पहु्च गये....भीड कफ़ी होने से आरक्षण दो अलग अलग शयनयान मे मिला था....सो मैने माताजी और दो बहनो को एक शयनयान मै पहुचाया और पिताजी के साथ दुसरे शनयान मे गया....हमने टिकट कलेक्टर से अनुरोध किया कि मेरे पिताजी हृदय रोग से पिडित है, अतएव अगर उन्हे भी माताजी और दो बहनो के साथ वाले शनयान मे भेज दिया जाय....इस पर वो सज्जन बडे ही रोब से बोले की बहुत भीड है....हो नही सकता....मैने उनसे अनुरोध किया कि कम से कम एक बार सूची तो देखे....शायद कोइ अकेला यात्री उस शनयान मे हो जिससे हम सीट विनिमय कर सकते है....तब तक पर वो सज्जन हमारी मजबूरी समझ गये थे....सो बोले 100 लगेगे....मैंने पूछा किस लिये....बोले सब देते है....यही तरीका है....मैने बोल मै तो नही दूगा....बस इतना सुनना था वो कफ़ी तैश मे गये और मेरे पिताजी को बोले "जा नही बदलता सीट"....मैने कहा नही बदलना तो कोइ बात नही....पर बात तो तमीज़ से किजिये....ये सुन कर वो और गुस्सा हो गये....और आनाप शानाप बोलने लगे....अब बारी हमारी थी....सो हम पहले शनयान से बाहर आये और फ़िर उनको भी नीचे आने को कहा....ये सारा वाक्या उज्जैन रेल स्टेशन पर स्टेशन प्रबन्धक के कमरे के सामने चल रहा था....वो बोले क्यो आये....सो हमने उन्हे हाथ पकड कर नीचे खीचा....वो कफ़ी गुस्से मे थे....नीचे आने पर मैने उन्हे बताया कि उन्हे आम आदमी से इस तरह बात करने का हक नही है तो वो लगे हमे धमकाने....पर हम भी सोच चुके थे कि आज इन महाशय को आम आदमी के बारे मे समझना ही परेगा....नीचे आने पर पता चला कि वो पिये हुए भी है....बस हमने भी हन्गामा शुरु कर दिया....सब से पहले तो उन्हे बोला कि वो मेरे पिताजी से माफ़ी मागे....वो नही माने....तब तक स्टेशन प्रबंधक हन्गामा देख कर वहा गये थे....बोले क्या हो रहा है....मैने बोल कि ये सज्जन ड्यूटी पर मदपान किये हुए है और आनाप शानाप बोल रहे है....साथ मे रिश्वत के लिए पूछ रहे है....मैने स्टेशन प्रबंधक से शिकायत पुस्तिका मागी....और कहा कि आप अभी इनके खून का नमूना लेने का प्रबन्ध करे....पहले तो वो आना कानी करने लगे....पर जब वहा भीड ज्यादा हो गयी तो मुझे एक तरफ़ ले जा कर बोले की अगर मै लिखित शिकायत दूगा तो उसकी नौकरी पर बन आयेगी....मैंने कहा मुझे परवाह नहीं है, वह ड्यूटी पर नशे में है और अभद्र सुलूक कर रहा है....तब तक 3-4 और साथी टी. टी. मेरे पास आगये....उन्हे सारी बात पता चल चुकी थी....आते ही उनमे से एक ने मेरे हाथ मे टिकट दिया....जिसमे उन्होने मेरे पिताजी की सीट बदल कर बाकी परिवार के साथ कर दी थी....बोले अब जाने भी दो....मैने बोला नही पहले उसे बोलो की मेरे पिताजी से दोनो हाथ जोड कर माफ़ी मागे....उन साथी टी. टी. ने जाकर उसे समझाया और आख़िरकार उसने हाथ जोड कर माफ़ी मागी भी....क्योंकि मैंने तय किया था कि रिश्वत  नही दूगा इस लिये अपनी बात पर अडा रहा और आख़िरकार उसे झुकना पडा, पर फिर भी आज भी मन मे ये मलाल है कि काश उस दिन मैने लिखित शिकायत की होती....जो कि हर एक नागरिक का फ़र्ज़ है तो कही कोइ तो शुरुआत होती....इसके बाद और भी मोके आये जब मुझसे रिश्वत की माग की गयी....जैसे मेरे पिताजी के निधन के बाद माताजी के नाम पेंशन स्थानांतरित करने के लिये राज्य - कोष निधि लिपक ने 5000 मागे....मै उसे हा बोल कर सीधा जाकर उसके अधिकारी को उसकी मेज पर लाया....और दुबारा बोला कि फ़ाइल सामने है तो पास क्यो नही करते....बेचारे ने मजबूरी मे आदेश जारी किये। लेकिन समय ने एक दिन हमे भी झुका दिया....


पर लगता है कि किसी ना किसी को कही कही से शुरुआत करनी ही होगी....तो क्यो ना हिन्दी ब्लॉग के माध्यम से हम लोग एक स्वस्थ अभियान की शुरुआत करे....हम विभिन्न-विभिन्न लेखो के माध्यम से लोगो को जागरुक करे.... तो शायद कोइ बात बने। मै जानता हू कि ये आसान नही है पर कोशिश करने मे क्या हर्ज़ है?